कोई कविता-कहानी, उपन्यास या कोई भी साहित्यिक रचना पढ़ते हम सब बहुत ज़्यादा सोचने लगते हैं कि आख़िर इसका मतलब क्या है? जो हमें समझ आया उसको नकारकर उसमें कोई गूढ़ रहस्य खोजने में लगे रहते हैं। जो कि अपनी जगह कुछ हद तक ठीक भी है। लेकिन मुझे इस बात से बहुत आपत्ति है।
अगर मेरी मानिए तो साहित्य की यही खूबी है कि इसके पास हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ है। किसी साहित्यकार ने क्या लिखा वह उसी अर्थ में नहीं समझा जाता है हर बार। पाठक या श्रोता के लिए उसके अपने मायने होते हैं।
आप कोई कहानी पढ़कर ठीक वही नहीं सोच सकते जो लेखन ने सोच समझकर लिखा था। हर व्यक्ति का अपना अलग इंटरप्रेटेशन होता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण जो अधिकतर लोग जानते भी होंगे वो है ये ग़ज़ल- ‘वो हमसफ़र था’। इस ग़ज़ल को अक्सर प्रेम सम्बन्ध से जोड़कर ही पढ़ा-सुना जाता है। पर दरअसल ये नसीर साहब ने फॉल ऑफ़ ढाका पर लिखी थी। ये सुनकर लोगों को बड़ी हैरत होती है लेकिन यही सच है।
ऐसा ही एक टीएस इलियट की बहुत चर्चित किताब ‘द वुड्स’ का भी एक क़िस्सा है। उनकी ये किताब पर्यावरण के तत्कालीन इश्यू को लेकर बहुत मशहूर हुई। तभी एक इंटरव्यू में उनसे इस किताब के विषय में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि असल में ये उनके और उनकी पत्नी के वैवाहिक सम्बन्ध पर लिखी गई किताब थी।
ऐसा ही एक क़िस्सा बहुत लोकप्रिय किताब ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सोलीट्यूड’ (‘एकाकीपन के सौ वर्ष’ नाम से हिन्दी में अनुवाद) के बारे में है। यह अपने समय में बाइबल के बाद दूसरी सबसे ज़्यादा बिकने वाली किताब थी जिसके लेखक गैब्रियल गार्सिया मार्केस हैं। उनके इस उपन्यास को जिसने जैसे पढ़ा, अपने ढंग से समझा। किसी ने इसे लैटिन अमेरिका का इतिहास बताया तो किसी ने इसे विश्व का इतिहास बताया। कई विद्वानों ने इसे मानव जीवन का ही इतिहास मान लिया।
ये तो मैं कुछ चुनिंदा किताबों का ही बता रही हूं जो मुझे बेहद पसंद आईं थी। इसके अलावा भी न जाने कितना कुछ है।
इतना सब बताने का सारांश बस यही है कि किसी भी रचना को आप अपने तरीके से पढ़ना सीखिए। लेखक ने क्या बताना चाहा से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि आपको वो पढ़कर क्या समझ आया। तो अगली बार आप जब भी कोई कहानी या कविता या उपन्यास पढ़ें या फ़िल्म ही क्यों न देखें, अपने नज़रिए से देखने की कोशिश करें। और जब बिल्कुल कुछ भी न समझ में आए तब उसके बारे में खोजकर पढ़िए। हालांकि मुझे यकीन है ऐसा नहीं होगा कि आपको कुछ भी समझ में न आए बशर्ते अगर आप अपने आसपास की चीज़ों पर गौर फरमाते हों।
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