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शिकारगाह से महल और फिर खंडहर में तब्दीली की कहानी

  • 12 Apr, 2024
तस्वीर साभार: स्वयं | मालचा महल, चाणक्यपुरी

राजधानी दिल्ली के दिल में छुपा एक महल जो अपनी गुमनामी में नाम कमा रहा है। कहानी 'मालचा महल' की है। मालचा महल जो दिल्ली ही नहीं, भारत की सबसे डरावनी जगहों में शुमार है। इसके भूतिया होने को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ हैं। पर आश्चर्य है कि अधिकतर लोग इसके बारे में जानते ही नहीं।

चाणक्यपुरी इलाके में सुनसान घने जंगलों के बीचोंबीच स्थित 'मालचा महल' आज खण्डर में तब्दील हो चुका है। एक शाही महल के खण्डर होने की कहानी जितनी दिलचस्प है उससे कहीं ज़्यादा रहस्यमयी है।

मालचा महल की ओर जाता रास्ता

तुग़लक़ वंश के शासन काल में निर्मित इस जगह के तार कैसे अवध के राजपरिवार से जुड़ते हैं और देर-सवेर इसका सम्बन्ध इन्दिरा गाँधी से भी हैं। इसके बावजूद ये जगह लोगों की नज़रों से बची रही।

दिल्ली के शासक फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ शिकार खेलने का शौकीन था। उसने तब दिल्ली के घने जंगलों में तीन शिकारगाह तैयार करवाया- ‘पीर ग़ालिब’, ‘भूली भटियारी का महल’ और ‘मालचा महल’। मज़ेदार बात तो ये है कि इन तीनों शिकारगाह को लेकर डरावनी किस्से-कहानियाॅं प्रसिद्ध हैं जिसके कारण इनको भूतिया माना जाता है।

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    17 साल से दिल्ली के कालकाजी में रह रहे 36 वर्षीय कल्पेश हर रोज़ सुबह उठकर सैर के लिए निकलते हैं। सैर से लौटते हुए वो रास्ते में रेड़ी से डाब (नारियल पानी) लेने के लिए रुकते हैं। जब रेड़ी वाले भईया उन्हें नारियल पॉलीथीन में देते हैं तो कल्पेश याद से प्लास्टिक स्ट्रॉ लेना नहीं भूलते। घर लौटते कल्पेश पास वाली दुकान से दूध और चीनी पॉलीथिन में लेते आते हैं। घर आकर वे ऑफ़िस के लिए तैयार होने में लग जाते हैं। ऑफ़िस के लिए डब्बा वो पॉलीथिन में पैक करते हैं ताकि सब्ज़ी से तेल निकलकर बैग में न फैल जाए। शाम को घर लौटते वक्त कल्पेश कुछ हरी सब्ज़ियां और साथ ही बच्चों के लिए उनकी पसंदीदा चीज़ें पैक कराते हैं, वह भी पॉलीथिन में जिसके एक इस्तेमाल के बाद वे इसे कूड़े में फेंक देंगे।.

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    26 वर्षीय पूनम (बदला हुआ नाम) दिल्ली विश्विद्यालय से पीएचडी की पढ़ाई कर रही हैं। उनसे दिल्ली के सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति के बारे में पूछने पर पूनम हमें अपने सेकेंडरी स्कूल के दिनों में ले जाती हैं जब वे अपनी मां के साथ  बाज़ार जाया करती थीं। “बाज़ार के लिए निकलने से पहले की तैयारीयों में जितना ज़रूरी याद से पर्स रखना होता था, उतना ही ज़रूरी याद से घर से पेशाब करके निकलना होता था। क्योंकि अक्सर बाज़ार में या कहीं भी पब्लिक प्लेसेस में लेडीज़ टॉयलेट्स की सुविधा नहीं होती थी। कहीं रास्ते में तो भूल ही जाओ कि आपको टॉयलेट मिलेगा। कम-से-कम आज ये स्थिति कुछ बेहतर हुई है। लेकिन अब भी बहुत सुधार की ज़रूरत है।”.

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    On the occasion of the birth anniversary of the Nobel Prize Winner RABINDRANATH TAGORE, sharing one of my favourite excerpts from the book TAGORE A Life by Krishna Kriplani:

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    देश में वसंत ख़त्म हुआ नहीं कि गर्मी शुरू हो गई। और अप्रैल महीने की शुरुआत के साथ ही गर्मी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। देश के कई हिस्सों में पारा लगातार बढ़ रहा है। लू का असर अभी से शुरू हो गया है। मौसम विभाग ने इसकी वजह से एडवाइज़री में लू (हीटवेव) का एलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग ने शनिवार (6 अप्रैल) को कहा है कि अगले दो दिनों के दौरान दक्षिण भारत के कई राज्यों में लू चलने की संभावना है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में तापमान अभी ही 43 डिग्री पहुंच चुका है। जो कि अगले कुछ दिनों में और बढ़ने वाला है।

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    कालकाजी डीडीए फ्लैट्स में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री और आप नेता सौरभ भारद्वाज के नाम के सारे बोर्ड पर सफ़ेद पेंट पोत दिया गया है। ज़ाहिर है चुनाव करीब है और आचार संहिता लागू है तो इस तरह के प्रचारक बोर्ड्स को या तो ढक दिया जाता है या किसी तरह उसमें लिखा नाम छुपा दिया जाता है। मार्केट में ही बोर्ड के बिल्कुल ठीक सामने सब्ज़ी बेचने वाले एक दंपत्ति ने भी यही कहा- “जो लोग सड़क पर सफ़ेद लाइन बनाते हैं उन्होंने ही ये किया है।” जब हमने और पूछा तब उन्होंने बताया कि- “ऐसा तो हर चुनाव से पहले होता है। जब चुनाव हो जाएंगे तब जो नेता चुनकर आएगा उसका नाम इधर लिख दिया जाएगा।”

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    ‘क्या ख़बर कैसी होगी’: जितनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल उतनी ही ख़ूबसूरत गायकी

    जावेद अली मेरे पसन्दीदा गायकों में से एक हैं जिन्हें सुनना बेहद पसन्द है। उनकी आवाज़ तो शानदार है ही, साथ ही उनका डिक्शन भी कमाल है; उनके गाने का हर शब्द आपको बराबर समझ आएगा।

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    दिल्ली में कचरा प्रबंधन को दुरुस्त करने के लिए दिल्ली सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है। इसके लिए ‘ज़ीरो वेस्ट कॉलोनी’ जैसे तमाम तरह के उपाय किए जा रहे हैं। लेकिन कचरा प्रबंधन में सबसे बड़ी चुनौती कचरा एकत्रित करने की है। यूएनईपी की एक रिपोर्ट के अनुसार- भारत का 40% कचरा एकत्रित न होकर जहां-तहां कूड़े के रूप में पड़ा रहता है।

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  • बशर्ते आप अपने आसपास की चीज़ों पर गौर फरमाते होंबशर्ते आप अपने आसपास की चीज़ों पर गौर फरमाते हों

    बशर्ते आप अपने आसपास की चीज़ों पर गौर फरमाते हों

    कोई कविता-कहानी, उपन्यास या कोई भी साहित्यिक रचना पढ़ते हम सब बहुत ज़्यादा सोचने लगते हैं कि आख़िर इसका मतलब क्या है? जो हमें समझ आया उसको नकारकर उसमें कोई गूढ़ रहस्य खोजने में लगे रहते हैं। जो कि अपनी जगह कुछ हद तक ठीक भी है। लेकिन मुझे इस बात से बहुत आपत्ति है।

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  • केशदान! करके देखिए, अच्छा लगता हैकेशदान! करके देखिए, अच्छा लगता है

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    मुझे लगभग तीन साल हो गए हैं केशदान किए। ये यहाॅं साझा करना ज़रूरी लगा क्योंकि इसको लेकर हमारे बीच जागरूकता कम है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भी मैं केशदान का ज़िक्र किसी से करती हूॅं तो अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती और काफ़ी बार हैरत में पड़ जाते। कारण कई हो सकते हैं।

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  • भारतीय राजनीति में ऊंचे पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रश्नभारतीय राजनीति में ऊंचे पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रश्न

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    बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव में मातो देवी और उनका परिवार रहता है। चुनावी साल है और घरों में बहस छिड़ी है कि कौन अच्छा काम करेगा, हम किसे वोट करें? सब ने अपना-अपना कैंडिडेट (उम्मीदवार) चुन लिया। पर ये क्या! सबने तो एक ही चुन लिया। सबने कहा हम तो इसे ही वोट देंगे। अरे नहीं! मातो देवी ने अपना पसंदीदा उम्मीदवार घोषित किया और बोली कि मैं तो इसे ही वोट दूंगी। एकाध ने इरादा बदलने की कोशिश की। पर वो नहीं पलटी बल्कि बोली- “जिसको सोचा है उसी को अपना वोट दूंगी, मेरे लिए उसी ने काम किया है।”

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  • सोशल मीडिया नियमन से तय होगी जवाबदेही?सोशल मीडिया नियमन से तय होगी जवाबदेही?

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    हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने कर्मचारियों के सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल करने के सम्बन्ध में नीति तैयार करने के लिए एक समिति बनाई है। इस पर डीयू में पढ़ा रहे शिक्षकों का कहना है कि यह उन पर ऑनलाइन निगरानी रखने की रणनीति है। हालाॅंकि वाजिब सवाल यह होना चाहिए कि आख़िर ये नीतियाॅं लागू करने की ज़रूरत क्या है जब पहले ही एक व्यक्ति के रूप में उन पर वे सभी नीतियाँ लागू होती हैं जो किसी भी सामान्य व्यक्ति पर सोशल मीडिया इस्तेमाल को लेकर होते हैं। तो विभिन्न परतों पर उनके शेयर किए जानकारी को फ़िल्टर करने का क्या औचित्य है?

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  • पाठ्यक्रम के माध्यम से अनुकूलनपाठ्यक्रम के माध्यम से अनुकूलन

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    हाल के दिनों में सीबीएसई अपने सिलेबस में बदलाव को लेकर बहुत सुर्ख़ियों में रहा हैं। सिलेबस में इतिहास सम्बन्धी विषयों को नए नज़रिए से देखने की कोशिश के साथ ही इनमें बदलाव भी हो रहे हैं। लेकिन विमर्शों से जुड़े विषयों का क्या? ख़ासकर पाठ्यक्रम में स्त्री विमर्श से जुड़े मुद्दे? कोरोना काल में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई जा रही दो कविताओं पर ऑनलाइन आपत्ति तो जताई गई लेकिन फ़िर उनका क्या हुआ?

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