यूँ तो अमृता प्रीतम पर न जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं फिर भी ये कुछ ज़्यादा ख़ास है। ख़ास इसलिए कि इसके पहले तक जो कुछ भी और जितना भी अमृता जी के बारे में लिखा गया था, उनमें कभी साहिर का ज़िक्र आता तो कभी-कभी साथ चलते इमरोज़ का तो कभी ये “लव ट्रैंगल” लोगों को बहुत दिलचस्प लगता। प्रेम में पड़े लोगों को तो आकर्षित करता।
ऐसे में ‘उमा त्रिलोक’ अमृता की जीवनयात्रा में इमरोज़ को शामिल करके देखती हैं। वो सब दर्ज करती चली जाती हैं जो उन्होंने बेहद क़रीब से देखा और महसूस किया है। यहाँ यह बता देना ज़रूरी है कि उमा त्रिलोक उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं जो अमृता जी के आख़िरी वक्त में उनके साथ थीं।
किताब अमृता-इमरोज़ पर होते हुए भी, इमरोज़ के नज़रिए को केन्द्र में रखती है; इमरोज़ इस रिश्ते को लेकर क्या सोचते-समझते हैं। साथ ही इसमें मुझ जैसे जिज्ञासु पाठकों के साहिर से जुड़े अपने निजी सवालों के जवाब भी मिलते हैं।
समग्रता में, जैसा कि गुलज़ार साहब अमृता-इमरोज़ के लिए कहते हैं कि- “उनका रिश्ता नज़्म और इमेज का-सा रिश्ता है।” मेरी मानें तो इस ख़ूबसूरत रिश्ते को जानने-समझने के लिए यह एक ख़ूबसूरत किताब है।
130 पन्नों की इस किताब में उमा त्रिलोक ने इमरोज़ के बनाए चित्रों को भी शामिल किया है अपने आप में कई कहानियां कहते हैं। इमरोज़ के बनाए चित्र और अमृता की कविताओं से इस किताब को संवारा गया है। ज़ाहिर है अधिकतर कविताएं अमृता जी ने पंजाबी में लिखी थी तो इस किताब में पंजाबी के साथ हिन्दी अनुवाद दिया है। जो कि मुझे बहुत अच्छी लगी क्योंकि अमूमन सिर्फ़ अनुवाद दिया करते हैं उसका ओरिजनल वर्ज़न नहीं। और तो और इसमें एक कविता इमरोज़ की भी पढ़ने मिलेगी जो उन्होंने अमृता के लिए लिखी थी।
ये किताब एक बैठक में पढ़ जाने वाली है। हालांकि मुझे पढ़कर लगा कि ये बहुत जल्दी ख़त्म हो गई। लेखिका से बस एक यही शिकायत है कि बहुत कम लिखा।
अगर अमृता-इमरोज़ को क़रीब से जानना चाहते हैं तो ये किताब बेशक पढ़ जाइए। मुझे तो तोहफ़े में मिली लेकिन आप अपनी ख़रीद लीजिएगा।
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